Poonam Masih
Shweta Pandey
आगामी विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने अपने प्रत्याशियों के नाम की घोषणा कर दी है। लेकिन अभी भी कुछ सीटों पर प्रत्याशियों के नाम का ऐलान बाकी है। बीते दिनों पार्टी द्वारा 148 प्रत्याशियों को टिकट दिया गया। जिसमें पश्चिम बर्दवान की नौ सीट के प्रत्याशियों के नाम भी शामिल है। इसमें सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि हिंदी बेल्ट की इन नौ सीटों में हिंदी भाषायी प्रत्याशियों की उम्मीदवारी बहुत ही कम है।
सिर्फ दो सीट पर हिंदी भाषी उम्मीदवार
सभी नौ सीटों पर सिर्फ दो हिंदी भाषी प्रत्याशियों को टिकट दिया गया। जिसमें पांडेश्वर के जितेंद्र तिवारी और कुल्टी से डॉ. अजय पोद्दार शामिल है। हमेशा हिंदी को बढ़ावा देने की बात करने वाली बीजेपी ने हिंदी बेल्ट में ही हिंदी को तरजीह नहीं दी है। अब देखने वाली बात यह है कि इसका असर आने वाले चुनाव पर कितना पड़ता है।
हिंदी भाषियों का दबदबा
आसनसोल नॉर्थ विधानसभा में ज्यादातर हिंदी भाषी रहते हैं। इस क्षेत्र में लगभग 55 से 60 प्रतिशत हिंदी भाषी हैं। चूंकि आसनसोल में सीमेंट, कोयला खदान, स्टील, रेलवे जैसे उद्योग हैं। जिसमें काम करने के लिए वाले ज्यादातर लोग बिहार और पूर्वी यूपी से 50-60 साल पहले यहां आकर बसे हैं। इनमें से कुछ नौकरी से रिटायर्ट होने के बाद वापस अपने गांव चले गए हैं। जबकि कईयों की अगली पीढ़ी यही बस गई है। ऐसे में सवाल उठता है जब इतनी बड़ी संख्या में हिंदी भाषी लोग यहां रहे तो किसी हिंदी भाषी को टिकट क्यों नहीं दिया गया। इस सीट में हिंदी कहने का मतलब सिर्फ हिंदू ही नहीं हैं। ब्लकि इस क्षेत्र में रहने वाले मुस्लिम भी हिंदी भाषी है। जिन्हें बंगाली मुस्लिम, बिहारी मुस्लिम कहकर संबोधित करते हैं। इस क्षेत्र में 10 प्रतिशत बिहारी मुस्लिम है। जिसका साफ मतलब है यहां धर्म के अंतर पर नहीं ब्लकि हिंदी भाषा के आधार पर लोगों की जनसंख्या ज्यादा है।

बीजेपी के प्रबल उम्मीदवार
आसनसोल नॉर्थ सीट पर निर्मला कर्मकार, डॉ देवाशीष सरकार, कृष्णा प्रसाद दावेदार थे। लेकिन बुधवार को उम्मीदवारों की नामों की घोषणा में कृष्णेंद्र मुखर्जी के नाम ने सबको चौंका दिया। जबकि खबरों की मानें तो कृष्णेंद्र मुखर्जी ने आसनसोल साउथ से नामांकन भरा था। लेकिन उन्हें टिकट आसनसोल नॉर्थ से दिया गया है। इस क्षेत्र के युवाओं का कहना है हिंदी भाषीय आबादी को देखते हुए कृष्णा प्रसाद इस सीट के सबसे प्रबल दावेदार है। जो हिंदी भाषीय लोगों का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं। उन्हें हर तबके के लोगों का समर्थन प्राप्त है। स्थानीय लोगों की कहना है कि एक समाजसेवी के तौर पर वह हर घर में जाने जाते हैं। उनकी कर्तव्यनिष्ठता जाति, धर्म से ऊपर उठकर लोग हित की है। आसनसोल नॉर्थ से उन्हें सीट न मिलने कारण हिंदी भाषी बीजेपी कार्यकर्ताओं में थोड़ी नाराजगी भी है। यह नाराजगी खुले तौर पर तो नहीं है ब्लकि पार्टी के लोग दबे जुबान से ही सही, लेकिन कृष्णेंदु मुखर्जी को एक उम्मीदवार के तौर पर स्वीकार नहीं कर पर रहे हैं।
लोगों के बीच कृष्णा प्रसाद छवि
पिछले साल कोरोना के दौरान जब सभी लोग अपने-अपने घरों में बंद थे। ऐसे वक्त में कृष्णा प्रसाद गरीबों को लिए मसीहा बनाकर आगे आएं। उन्होंने आसनसोल क्षेत्र के कई इलाकों में राशन बंटा। इतना ही नहीं वह अक्सर जरुरमंद लोगों की मदद करने के लिए आगे रहते हैं। ठंड में कंबल बांटना हो या किसी की आर्थिक मदद करनी हो वह हमेशा ही जनता की हित में आगे रहते हैं। आसनसोल नॉर्थ विधानसभा सीट पर अल्पसंख्यक लोगों की संख्या भी अच्छी खासी है। रेलपार इलाके में रहने वाले ज्यादातर अल्पसंख्यक हिंदी भाषी है जिनमें कृष्णा प्रसाद की अच्छी पकड़ है। कुछ दिन पहले ही बीजेपी की सदस्यता ग्रहण के बाद उन्होंने रेलपार इलाके में हिंदू-मुस्लिम एकता मंच का आह्वान किया था। जिसमें भारी संख्या में मुस्लिम भी मौजूद थे। साल 2016 में हुए विधानसभा चुनाव में आसनसोल नॉर्थ में बीजेपी दूसरी नंबर पर रही। इस सीट पर बीजेपी ने 28 प्रतिशत की बढ़त बनाई थी। जबकि विजयी पार्टी तृणमूल को 16 प्रतिशत वोट कम हुआ था। ऐसे में अगर इस हिंदी बेल्ट से किसी हिंदी भाषी को टिकट दिया जाता तो शायद चुनाव का परिणाम चौंकाने वाला हो सकता है।
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